Tuesday, May 13, 2014

नई सरकार और जमानत जब्ती !!!

    लोक-सभा 2014 के चुनावों के एग्जिट पोल बता रहे हैं कि NDA की सरकार और नरेंद्र मोदी का प्रधान मंत्री बनना तय है. इन चुनावों में सबसे बुरे हालात कांग्रेस के, साफ है कि राहुल गाँधी के प्रयोगों को देश की जनता ने पूरी तरह से नकार दिया है. जिस कांग्रेस ने दिल्ली के पिछले विधान-सभा के चुनावों में आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार बनाई, आम आदमी पार्टी को पाला-पोसा, उस आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस को बर्बाद करके रख दिया. सभी जानते हैं कि यदि आम आदमी पार्टी कांग्रेस के वोट नहीं काटती तो इन चुनावों का परिद्रश्य कुछ और हो सकता था? यह राहुल गाँधी की अदूरदर्शिता, अप्रिव्कता और अनुभवहीनता का ही नतीजा है. राहुल गाँधी यदि चाहते तो ऐसे हालात होने से बच सकते थे, पर अफ़सोस यह है कि वह कुछ ऐसे लोगों से घिरे हुए हैं, जो केवल उनकी हाँ में हाँ ही मिलाते हैं उन्हें गलत-सही की जानकारी नहीं देते.
   दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी के अरविन्द केजरीवाल प्रधान-मंत्री बनने की जल्दबाजी में, अपनी मुख्य-मंत्री की कुर्सी छोड़ देते हैं. सैवैधानिक और वैचारिक रूप से अपनी सरकार को "कुर्बान" कर देने जज्बा दिखाना चाहते हैं पर जनता अरविन्द केजरीवाल के इन सभी दावों को नकार देती है. सम्भावना है कि २०१४ के लोक-सभा चुनावों में आम आदमी पार्टी (आप) एक ऐसा सबसे बड़ा दल बनके उभरेगा, जिसके सबसे ज्यादा प्रताशियों की जमानत जब्त हो सकती है?
   The Week India ने आम आदमी पार्टी से दिल्ली के पिछले विधान-सभा चुनावों में यह सम्भावना व्यक्त की थी कि शायद आम आदमी पार्टी को दिल्ली में सरकार बनाने लायक सीटें नहीं मिल पायेगी. इस सबंध में आम आदमी पार्टी से कुछ सवाल भी पूछे थे. आज तक आम आदमी पार्टी (आप) ने तो उन सवालों का जबाब तक नहीं दिया. आम आदमी पार्टी के इस व्यवहार को देख कर ऐसा लगता है कि इस पार्टी को कुछ अहंकार है और यह पार्टी अपने चश्मे से ही दुनिया को देखना चाहती है, और इनको किसी की कोई परवाह नहीं है? अगर "आप" को राजनीती में रहना है तो बाकी लोगों की परवाह भी करनी होगी और बाकी लोगों की बातों पर ध्यान भी देना होगा, जरुरत होने पर अपनी नितिओं में बदलाव भी करना होगा, वर्ना जो जनता सिर पर चढ़ा सकती है वही जनता अपने पैरों में गिरा भी सकती है? भले ही फिर यह कोई भी दल या पार्टी क्यों ना हो.

Tuesday, September 24, 2013

भारतीय पुलिस और सीबीआई की कार्य-प्रणाली इतनी विचित्र सी है की आश्चर्य होता है|

    ऐसा लगता है पुलिस और सीबीआई जैसी संस्थाएं राजनैतिक भेद-भाव की पूर्ति करने वाली संस्था बन गयी हैं?


      आसा राम की गिरफ़्तारी ने पुलिस की कार्यप्रणाली को पूरे देश के सामने ला दिया है| इस गिरफ़्तारी ने बता दिया की इस देश की पुलिस कितने भेदभाव से कम करती है ? पुलिस यदि चाहे तो गैर जमानती वारंट होने पर भी किसी को 10-12 दिनों तक खुला छोड़ सकती है| एक दूसरा उदाहरण मुजफ्फ़रनगर की पुलिस का है जहाँ राजनैतिक आकाओं के हुक्म को पूरा करने के लिए दंगे होने ही दिए| उन दंगों से सबंधित कुछ आरोपियों को तो पकड़ा लिया पर कुछ आरोपियों को नहीं पकड़ा| ठीक दंगों के समय कुछ पकडे गए नामजद आरोपियों को "ऊपर" से आये फ़ोन के कारण छोड़ दिया गया| यह केवल राजनैतिक विद्वेष को ही दर्शाता है| हर मसले पर राजनैतिक रोटियाँ सेकीं जा रही हैं| यह हमारे देश की पुलिस की विचित्र कार्यप्रणाली के दो उदाहरण हैं| पर, अपने देश में पुलिस की ऐसी विचित्र कार्यप्रणाली के इतने मामले मिल जायेंगे कि एक पूरी बाइबिल लिखी जा सके|
     अपने इस देश की पुलिस की कार्य कार्य प्रणाली जब ऐसी है तो भारत की सीबीआई और बाकी संबैधानिक संसथानों की कार्य प्रणाली को भी आसानी समझा जा सकता है| कितनी शर्म की बात है की आजादी के 65 से भी ज्यादा सालों बाद हमारे देश में केवल राजनैतिक शत्रु और मित्र के आधार पर ही बड़े से बड़े निर्णय होते हैं| क्या कारण है कि करोड़ों रुपये के चारा घोटाले के अपराधियों को आज तक सजा नहीं मिल पाई है| आय से अधिक संपत्ति के मामलों में भी सालों साल बीत जाने पर कोई नतीजा नहीं निकला है? सीबीआई को सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी तोता ऐसे ही नहीं कहा है| भारतीय पुलिस और सीबीआई जैसी संस्थाओं के पास सरकारी वकील, विशेषज्ञ और सभी तरह के साधन मौजूद हैं| फिर भी न जाने क्यों जब राजनेतिक अपराधियों की बात आती है तो अदालतों में दाखिल होने वाले आरोप-पत्रों, शपथ-पत्रों और अन्य सरकारी दस्तावेजों में कितनी कमियां हो जाती हैं, (या जानबूझ कर रख दी जाती हैं?) जिसके कारण अदालत को याचिका या मुकदमा वापिस लौटाना पड़ता है, या फिर उस मसले पर सख्त टिप्पणी करनी पड़ती है| क्या कारण है कि बड़े से बड़े घोटालेबाज सजा से तो बचे घूम ही रहे हैं और सत्ता-सुख भी भोग रहे हैं?
     ताज कोरिडोर का मामला हो, कोलगेट हो, 2G हो, बोफोर्स हो, सेना का जीप घोटाला हो, ताबूत घोटाला हो, राष्ट्रमंडल खेलों के घोटाले हों, सांसदों की खरीद-फरोख्त के मसले हों....और,और और इतने ज्यादा घोटाले की इन घोटालों की भी एक बाइबिल बना सकते हैं, बल्कि कई बाइबिल बना सकते हैं, घोटालों की बाइबिल भाग 1, भाग 2, भाग 3 आदि-आदि अनादि| ऐसे ही कुछ मामलों को तो सीबीआई बंद ही कर देना चाहती है, क्या आप लोगों को यह आश्चर्यजनक नहीं लगता? पर इस देश की गरीब बेचारी जनता कर ही क्या सकती है? अगर आप लोगों के पास इसका कोई जबाब हो तो कृपया आप अपने विचारों से अवगत कराएं (जनता के वोट डालने के अधिकार के अलावा कोई और विकल्प बताएं क्योंकि जनता तो बेचारी कई सालों से वोट डाल ही रही है....) |
यह दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का शर्मनाक पहेलू ही है कि इस देश पर वो ही लोग शासन करते आये हैं जो केवल अपनी कुर्सी पर बैठे रहना चाहते हैं, भले ही उसके लिए रास्ते से किसी को भी हटना पड़े या किसी को भी अपने साथ मिलाना पड़े| इन राजनेताओं का तो ऐसा मत लगता है कि अगर लाशों पर भी शासन करना पड़े तो करो|
    इतने गरीब इतने बेचारे आखिर हम क्यों हैं? शायद हमारे देश के शीर्ष राजनेता चाहते ही नहीं कि हम लोग भी खुशाल हो सकें| वो लोग हमें परेशान और दुखी ही देखना चाहते हैं, अन्यथा उनकी राजनीती चलनी मुश्किल हो जायेगी? अपने देश से छोटे देश अमेरिका और अमेरिका जैसे अन्य छोटे-बड़े दुसरे देशों को देखें, जिन लोगों ने अपनी कार्य प्रणाली में ऐसे  बदलाव किये हैं की देख-सुन कर बहुत अच्छा लगता है| फिर हम ऐसे बदलाव क्यों नहीं कर सकते? जितनी बीमार और गली-सड़ी कार्यप्रणाली हमारे देश के संबैधानिक संसथानों की है, उतनी तो शायद ही किसी और देश में देखने को मिले| कहीं और देखने को मिले या ना मिले, हमें ऐसी कोशिश करनी चाहिए कि हमारे देश में देखने को नहीं मिले, इस के लिए हमें कुछ तो हमें करना ही होगा| अपने बच्चो के प्रति हमारा कुछ तो कर्तव्य है ही ? या फिर हम लोग यूं ही सब छोड़ कर चले जायेंगे? अगर कुछ करना है तो, अभी करना है, अब वक्त बहुत कम है, जितना हम सोचते हैं शायद उससे भी कम|

Sunday, September 1, 2013

देश को बेचारी जनता जैसे-तैसे संभाल ही रही है|

 एक संयोग और देखने को मिल रहा है, जहाँ लोकतंत्र में जनता के सपने पूरे होने चाहिए वहां पर नेताओं के सपनों के अनुसार संसद में एक के बाद एक बिल पास हो रहे हैं| 

     प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि डीजल और पेट्रोल का प्रयोग कम करें| प्रधान मंत्री के काफिले के साथ चलने वाली दर्जनों गाड़ियाँ, शायद, डीजल और पेट्रोल के बजाय पानी से चलती हैं| प्रधान मंत्री की सरकार के मंत्रिओं और नेताओं के काफिलों की गाड़ियाँ हो सकता है कि पानी या हवा से चलती हों? जहाँ एक गाड़ी से जाया जा सकता है, वहां यह लोग गाड़ियों के काफिले ले कर चलते हैं, कई जगह तो नेताओं के साथ छुटभइये नेताओं और चमचों की गाड़ियों की लम्बी कतारें देखी जा सकती हैं| यह एक संयोग ही है कि वित्त (Finance)की बारीक़ जानकारी रखने वाले व्यक्ति को हमारे देश का प्रधान मंत्री बना दिया है| शायद इनको वित्त मंत्री बनाना ज्यादा अच्छा हो सकता था | इसमें भी दूसरा संयोग यह है कि हमारे प्रधान मंत्री जनता के द्वारा नहीं चुने गये हैं (माननीय प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह जी राज्य सभा के सदस्य हैं)| यह लोकतंत्र है या फिर हमारे लोकतंत्र का जरूरत से ज्यादा लचीलापन ? ऐसी बातें देख कर लगता है कि हमारे लोकतंत्र को कुछ बदलावों की आवश्कता है|
     श्री राहुल गाँधी, केवल एक सांसद हैं, लेकिन गाँधी परिवार का सदस्य होने के कारण देश के बड़े से बड़े फैसलों में तो हस्तक्षेप करते ही हैं, कई बार अपने से बहुत ज्यादा अनुभवी और वरिष्ट नेताओं को राजनीती का पाठ पढ़ाते दिख जाते हैं| कई नेता जब उनकी हर सही-गलत बात को एकदम सही बता देते हैं, और खीसें नुपोरते हैं, तो ऐसे लगता है जैसे चमचागिरी और चापलूसी की सभी हदें पार कर जायेंगे| ऐसा लगता है जैसे राहुल गाँधी इस देश को अपनी एक प्रयोगशाला बना देना चाहते हैं|  आश्चर्य तब ज्यादा होता है जब वरिष्टतम नेता भी श्री राहुल गाँधी को नहीं रोकते और न ही कुछ कहते हैं| हर कोई राहुल गाँधी को खुश करने में लगा हुआ है| यह हमारे लोकतंत्र के लचीलेपन का एक और उदाहरण है|
     एक संयोग और देखने को मिल रहा है, जहाँ लोकतंत्र में जनता के सपने पूरे होने चाहिए वहां पर नेताओं के सपनों के अनुसार संसद में एक के बाद एक बिल पास हो रहे हैं| अभी तक यह नहीं बताया गया है कि इन योजनाओं में लगने वाला लगभग 5 लाख करोड़ से ज्यादा रुपया कहाँ से आएगा? यदि सरकार विदेशों में रखे, लाखों करोड़ों रूपए के काले धन को भारत में ले आये तो इन योजनाओं के लिए काफी पैसा हो जायेगा, बचा हुआ पैसा अन्य योजनाओं में काम आ पायेगा| ....पर देश और जनता की सोचता कौन है? यहाँ तो जो कोई गद्दी पर बैठ जाता है, वो हमेशा, किसी भी तरीके से केवल अपना शासन चलाना चाहता है, चाहे उसके लिए कुछ भी करना पड़े| ऐसी खबरें आ रही हैं कि देश के हालात सुधरने के लिए देश का सोना गिरवी रखा जा सकता है| सही है भई "जब घर में पड़ा हो सोना, तो काहे का रोना" | सत्ता पक्ष हमेशा यह सोचता है कि अपना शासन चलाओ, भले ही उसके लिए देश और देश का खजाना खोखला कर दिया जाये| अगर, अगले चुनाव में जीत गए तो अपने गुण-गान करते रहेंगे, पब्लिक से सच छुपाते रहेंगे और ऊपर से टिप-टॉप दिखाते रहेंगे| अगर, कोई और दल या पार्टी जीती तो बदहाली का सारा ठीकरा उस दल के ऊपर फोड़ देंगे, उसकी नितिओं में कमी निकाल देंगें|
भई-वाह! भारतीय राजनीती, इसका कोई जबाब नहीं, या के फिर यह भी हमारे लोकतंत्र के लचीलेपन का ही उदाहरण है?
     हमारे देश के नेता जनता की मूलभूत समस्याओं से ध्यान हटा कर दुसरे बिन्दुओं पर जनता का ध्यान दिलाने के तरीके अच्छी तरह से सीख चुके हैं| कितना अच्छा होता, अगर आजादी के बाद से अब तक की सरकारों ने जनता के रोजगार के अवसर, शिक्षा के अवसर, स्वास्थ्य सेवा और अन्य सुविधाओं को उपलब्ध कराने की कोशिश पूरी ईमानदारी से की होती| यह कोशिश ईमानदारी से अभी तक की सरकारों ने नहीं की, और नतीजा सबके सामने है|
     125 करोड़ की जनसंख्या के साथ हम, संसार में सबसे ज्यादा जनसंख्या वाले देश चीन से जनसंख्या के मामले में टक्कर लेने को तैयार हैं| पर क्या हम आज की तारीख में चीन से तरक्की के मामले में भी टक्कर ले सकते हैं| आज के समय में चीन विश्व की अर्थव्यवस्था में उभरता हुआ मुख्य देश है, जिस से अमेरिका जैसा देश भी माहौल के अनुसार बात करता है| हमें नहीं भूलना चाहिए कि चीन भी भारत की तरह ही गुलाम देश था| लेकिन आजादी के बाद चीन आज कहाँ निकल गया और हम कहाँ रहे गए, हमारे साथ कुछ न कुछ तो गलत है ही| जनसंख्या वृधी रोकने के लिए आखिर हम क्या कर पाए हैं ? कुछ लोगों के लिए एक कानून है तो कुछ के लिए एक दूसरा कानून| जनसंख्या में भी धर्म का मसला आता है, और कानून बनाने वालों को वोट लेने होते हैं और वोटों की चिंता करनी होती है| वोट लेने के लिए तो यह कुछ भी कर सकते हैं, भले ही हमारे देश की जनसंख्या विश्व भर में सबसे ज्यादा ही क्यों न हो जाये|
      इस देश की गरीब जनता बेचारी दो वक्त की रोटी के जुगाड़ में लगी है, और वह लोग हमारे लिए निति निर्धारण करने में लगे हैं, जिन लोगों को जनता की वास्तविक समस्या से कुछ लेना देना नहीं है या फिर उन लोगों को जनता की वास्तविक समस्याओं का पता ही नहीं है| गरीब जनता पर शासन करते रहो, देश को बेचारी जनता जैसे-तैसे संभाल ही रही है|

Tuesday, August 27, 2013

देश की आम जनता तक बिना भेद-भाव के विकास और न्याय की अवरल धारा पहुंचनी चाहिए|

हमारे "लोकतान्त्रिक देश" की भेद-भाव की निति कब खत्म होगी? और आम-ओ-खास को एक समान अधिकार और अवसर मिलेंगे? 


     भेदभाव की निति भारत वर्ष में धर्म और जाति के आधार पर तो भेद्वाव किया ही जाता है, पर सक्षम-असक्षम, आम नागरिक और राजनेतिक या प्रभावशाली के आधार पर भी भेदभाव किया जाता है| कल संसद भवन में जब सोनिया जी की तबियत ख़राब हो गयी| तो उन्हें ईलाज के लिए हॉस्पिटल में ले जाया गया वहां लगभग 5 घंटे उनका ईलाज चला| तबियत बिगड़े तो सभी को ईलाज मिलना ही चाहिए, फिर चाहे वह सोनिया गाँधी हों या भारत का कोई आम आदमी| लेकिन भारत के आम आदमी को तो सही तरह से ईलाज मिल ही नहीं पाता है| कई बार तो आम आदमी (मरीज) को हॉस्पिटल में एडमिट ही नहीं किया जाता है| क्या भारत के एक आम आदमी को कभी ऐसा ईलाज मिल सकेगा जैसा सोनिया जी को मिला है?
    भारत के एक संत आसाराम बापू पर बलात्कार के आरोप लगे हैं| इन पर कानून की कई ऐसी धारा भी लगी हैं, जिन पर तुरंत गिरफ़्तारी होनी चाहिए साथ ही कई धारा गैरजमानती भी हैं, लेकिन कई दिन बीत जाने के बाद भी उनको गिरफ्तार नहीं किया गया है| क्या कारण है कि कानून का पालन नहीं किया जा रहा है? आप अच्छी तरह से कल्पना कर सकते हैं कि यदि यही सभी आरोप किसी साधारण व्यक्ति पर होते तो क्या होता? क्या पुलिस इसी तरह हाथ पर हाथ रख कर बैठी रहती? विदेशों से कई बार ऐसी ख़बरें आती हैं जिन में बताया जाता है की वहां के प्रधान मंत्री स्तर के नेताओं के परिवार जन यदि कानून तोड़ते हैं, तो उनको भी पुलिस गिरफ्तार कर लेती है|
      हमारे "लोकतान्त्रिक देश" की भेद-भाव की निति कब खत्म होगी? और आम-ओ-खास को एक समान अधिकार और अवसर मिलेंगे?  हमारे देश को धर्म और जाति-पाती ऊँच-नीच के दायरों में बाटने वाले हमारे देश के कुछ नेता हैं, जिन्होंने अपना वोट बैंक बनाने के लिए हर तरह के हतकंडे अपनाये| आजादी से लेकर अभी तक यह दौर ब-दस्तूर चालू है| कुछी दिनों पहले यह खबर आई थी कि एक राजनैतिक पार्टी के राजकुमार ने आने वाले चुनावों के उमीदवारों से उनका धर्म-जाति आदि पूछी है| साथ ही यह भी पूछा है कि उस उम्मीदवार की जाति के कितने वोटर उस क्षेत्र में हैं| राजनैतिक उठा-पटक से स्पष्ट है की हमारे देश के नेता वोटों के लिए कुछ भी कर सकते हैं| इस देश के नेताओं को यह समझ लेना चाहिए कि इस आम नागरिक की बदौलत ही इन नेताओं का अस्तित्व है| आम नागरिक के कारण ही नेता खास हैं, और खास रहन-सहन और खास ठाठ, शान-ओ-शौकत का लुफ्त ले पाते हैं| इसी देश के आम आदमी की वजह से पुलिस की सुरक्षा, लाल-नीली बत्तियों की गाड़ियाँ आगे-पीछे घुमती हैं| यह भेद-भाव मिटना ही चाहिए और...  देश की आम जनता तक बिना भेद-भाव के विकास और न्याय की अवरल धारा पहुंचनी चाहिए|

Monday, August 26, 2013

राजनेताओं ने हिन्दू को एक गाली सरीका बना दिया है|


भारतीय राजनेता जितना शक्ति प्रदर्शन हिन्दुओं पर करते हैं क्या मुसलमानों पर भी कर सकते हैं?
...विश्व हिन्दू परिषद् (वी.एच.पी.) प्रायः राजनैतिक परिस्तिथि और चुनाव के समय ही अपनी गतविधियाँ क्यों बड़ा देती है?

     उत्तर प्रदेश में आजकल जो हो रहा है उसे पूरा देश और विश्व देख रहा है| धारा 144 और पूरा शासन-प्रशासन, पुलिस लगा कर तथा 84 कोस यात्रा की किलेबंदी कर के उ. प्र. सरकार ने 84 कोस यात्रा को नाकाम करने के लिए अपनी सारी शक्ति लगा दी है| उ. प्र. सरकार का पूरा प्रशासन केवल इस बात को देख रहा है, कि प्रदेश में कुछ हो या न हो पर 84 कोस की यात्रा नहीं होनी चाहिए| कुछ राजनेता वोटों की खातिर धर्म विशेष को पूरी तरह से कुचलने और उसका शोषण करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं| एक तरफ एक धर्म विशेष का शोषण किया जाता है तो दूसरी तरफ अपने-आपको धर्म-निरपेक्ष कहलाने वाले न्यूज़ चैनल और कुछ नेता 84 कोस यात्रा पर चुटकी लेकर हिन्दुओं का मजाक उड़ा रहे हैं और जले पर नमक छिड़कने का काम भी कर रहे हैं| 
     इन धर्म-निरपेक्ष लोगों से पूछा जाना चाहिए कि इसमें मजाक उड़ाने लायक क्या है? यह धर्म-निरपेक्ष लोग किश्तवाड़ की घटना के समय कहाँ थे? इस तरह ही शासन-प्रशासन की पूरी शक्ति यदि किश्तवाड़ में लगायी जाती तो क्या किश्तवाड़ की स्तिथि अभी वाली होती? वहां पर राज्य और केंद्र सरकार केवल इस लिए चुप रहीं क्यों की वहां पर हिन्दू मारे गए, देश के तिरंगे को जलाया गया? क्या देश के झंडे का भी कोई धर्म होता है? लगता तो ऐसा ही है, वर्ना कतिथ धर्म-निरपेक्ष न्यूज़ चैनल किश्तवाड़ की पूरी कवरेज दिखाते और पूरा सच जनता के सामने रखते| इस मामले पर सभी न्यूज़ चैनलों और राजनेताओं पर चुप्पी छा गयी| नेताओं को तो हिन्दुओं को कुचलने पर दुसरे धर्म के वोटों के मिलने की उम्मीद रहती है, पर न्यूज़ चैनलों का क्या?
     हिन्दुओं को कुचलने और शोषण करने के लिए, "हिन्दू कोड बिल" लाकर बीज बोने का काम तो सालों पहले ही कर दिया गया था| आज के राजनेता तो उन बीजों को पानी देकर और पाल-पोस कर एक बड़ा पेड़ बनाने में लगे हैं| इन राजनेताओं का वश चले तो यह लोग अपनी राजनैतिक लड़ाई जितने के लिए आम जनता पर गोली भी चलवा सकते हैं| जैसा की मुलायम सिंह पहले कर भी चुके हैं| भारत के राजनेता, ऐसा लगता है कि पूरी तरह से निर्लज्ज हो चुके हैं, ऐसा भी लगता है कि यह राजनेता किसी भी सीमा को लाँघ सकते हैं| उ.प्र. के जिन जिलों में 84 कोस यात्रा होनी है उन जिलों के स्थानीय लोगों को कितनी परेशानी और दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है उस तरफ किसी का ध्यान तक नहीं गया है|
     विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के हालत देख कर बाकी संसार के लोग हम पर हँसते हों तो हमें आश्चर्य नहीं करना चाहिए| क्या यह ही लोकतंत्र का वास्तविक रूप है और इसी लोकतंत्र के लिए हमारे देश के वीर सपूतों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया था? अधिकतर राजनैतिक दल अपने प्रतिद्वंदी से आगे निकलने की होड़ में ऐसे अलोकतांत्रिक कदमों का प्रत्यक्ष या अप्रत्क्ष रूप से समर्थन करते हैं|
     भा.ज.पा. हिन्दुओं के लिए कुछ करेगी, ऐसा नहीं लगता, क्योकि पिछली बार भा.ज.पा. ने सत्ता में रहते हुए हिन्दुओं के लिय कुछ भी नहीं किया है, कोई वादा पूरा नहीं किया| इसीलिए हिन्दुओं को भा.ज.पा. से कोई उम्मीद नहीं रखनी चाहिए| वी.एच.पी. और भा.ज.पा. एक ही सिक्के के दो पहेलू हैं (वी.एच.पी. के कुछ नेता भा.ज.पा. के भी नेता हैं)| अधिकतर देखा गया है कि वी.एच.पी. की गतविधियाँ चुनावों में भा.ज.पा. को फायदा पहुंचाने के लिए होती हैं| अब जब वी. एच.पी. अपनी जिद्द पर अड़ी है तो देश में चुनाव का माहौल बन रहा है, चुनाव आने तक धीरे-धीरे वी.एच.पी. माहौल को और ज्यादा गर्माने की कोशिश करेगी, जिस से हिन्दुओं में हिंदुत्व की भावना भड़केगी| 
     अगर भा.ज.पा. को हिन्दुओं के लिए कुछ करना है तो कुछ कठोर कदम उठाने होंगे, कुछ कठोर और ठोस फैसले लेने होंगे, गुजरात के मुख्य मंत्री नरेंद्र मोदी की तरह| नरेन्द्र मोदी ने अपनी जो छवि बनाई है, युवाओं में जो नरेन्द्र मोदी के लिए जो उत्साह है, वी. एच. पी. के कारण उसमें कमी आ सकती है| मौजूदा भ्रष्ट सरकार से तभी निजात मिल सकती है जब उसके सामने कोई मजबूत दावेदार हो, पर ऐसा लगता है कि हिन्दुओं के नाम पर भा.ज.पा. अपना विश्वास खोती जा रही है| भा.ज.पा. पर हिन्दुओं को क्यों विश्वास करना चाहिए? इसका जबाब हिन्दुओं को मिलना ही चाहिए! 
     मेरे मत के अनुसार भा.ज.पा. अगर 2014 के चुनाव जितना चाहती है तो भा.ज.पा. को नरेन्द्र मोदी पर पूरा ध्यान देना चाहिए, नरेन्द्र मोदी की छवि के अनुसार ही चुनाव कार्यक्रम बनाना चाहिए| भा.ज.पा. को अपनी एक स्पष्ट और ठोस निति तथा स्पष्ट दिशा बनानी होगी और उसे जनता के सामने लाना होगा| भा.ज.पा. की ढुलमुल निति से अब काम चलने वाला नहीं है, वर्ना भा.ज.पा. न तो पूरी तरह से सरकार में आ ही पायेगी और न ही पूरी तरह डूब पायेगी| यदि भा.ज.पा. हिन्दुओं के साथ है तो भा.ज.पा. को ठोस तरह से यह स्पष्ट करना होगा कि वह हिन्दुओं के साथ है? भा.ज.पा. को यदि हिन्दुओं का साथ देना है तो एक बीज की तरह जमीन में दबना होगा| अगर बार-बार बीज को निकाल कर देखा जायेगा तो बीज पनपेगा कैसे? एक बार तो भा.ज.पा. चुनाव जीत कर सत्ता में आ चुकी है, पर हिन्दुओं का साथ छोड़ कर भा.ज.पा. ने बीज को जमीन (मिटटी) से निकाल कर देख ही लिया है|    ...पर अब शायद भा.ज.पा. को बीज निकाल कर देखने का मौका न मिले, क्योकि अब अगर जमीन से बीज निकाल कर देखा गया तो शायद बीज ख़राब ही न हो जाये | इसलिए भा.ज.पा. को हिन्दुओं का साथ देना है या नहीं ठोस और स्पष्ट रूप से बताना ही होगा, अच्छा होगा इसकी घोषणा, वी.एच.पी. के बजाय नरेन्द्र मोदी करें| नरेन्द्र मोदी को लोग एक आशा की नजरों से देख रहे हैं, नरेन्द्र मोदी की बातों में विश्वास नजर आता है| अब भा.ज.पा. के लिए हाँ या न कहने का वक्त आ गया है|

Tuesday, August 6, 2013

...आखिर हम कब तक एक गाल पर थप्पड़ खा कर दूसरा गाल आगे करते रहेंगे?


     पाकिस्तान के सैनिकों ने पुंछ में घात लगा कर 5 भारतीय सैनिकों को मार दिया है| इस मामले में आतंकवादियों के शामिल होने की भी खवरें हैं| भारत सरकार पवित्र रमजान के महीने की मर्यादा निभा रही है, जबकि पाकिस्तान में इस रमजान की मर्यादा का कोई मतलब नहीं है| पाकिस्तान के बार-बार के हमलों का मुह-तोड़ जबाब भारतीय सरकार क्यों नहीं दे रही है, किसी के कुछ समझ नहीं आ रहा है?
    65 सालों में भी हमारे देश का विदेश-मंत्रालय अपने पैरों पर भी खड़ा नहीं हो पाया है, आखिर कब हमारा विदेश-मंत्रालय चलना सीखेगा? ऐसा लगता है कि जैसे हम 65 सालों से हाथ पर हाथ रख कर बैठे हुए हैं| यह हमारे विदेश मंत्रालय की नाकामी ही जाहिर होती कि हम अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर 65 सालों में पूरे सबूत और तथ्य साबित नहीं कर पायें हैं| सरकार और विदेश मंत्रालय को बताना होगा की 65 साल में अभी तक क्या किया है, अब तक का जमा-खर्च क्या है? खाली विदेशी दौरें और बातचीत? आखिर कब तक यह विदेशी दौरे और बातचीत चलती रहेंगीं?
    बार-बार चर्चाएँ होती हैं कि बंगला-देश के नागरिक अवैध रूप से भारत में घुस जाते हैं और भारत की नागरिकता पा लेते हैं| भारत के नेता भारत में उन अवैध रूप से घुसे लोगों का वोट पाने के लालच में चुप-चाप यह तमाशा देखते रहते हैं| ऐसे लोगों की वोटर ID भी बन जाती हैं| बंगला-देश की अवैध घुसपैठ के बाद लगता है की पाकिस्तान के वोटरों का लालच भारत के नेताओं को सता रहा है, वोटों के लालच के कारण ही शायद पाकिस्तान पर कार्यवाही नहीं की जाती है? 
     ...पर कश्मीर के मामले में क्या है? कहीं ऐसा तो नहीं है कि कश्मीर में भी नकली वोटरों के नकली वोटर ID बन रहें हों? क्या वहाँ पर भी अवैध रूप से बाहर के लोग आ कर रहते हैं और वोट देतें हैं? अब वक्त आ गया है
भारत की जनता सरकार से जबाब मांग रही है, और सरकार को जबाब देना ही होगा| आखिर कब तक भारत की बेक़सूर गरीब जनता मरती रहेगी? जब तक कि पूरे 125 करोड़ लोग मार नहीं जाते? जब इस देश में कोई नहीं बचेगा तो इस देश के नेता तब किस पर राजनीती करेंगे, क्या लाशों पर?  
     अगर हम लोग अब भी नहीं चेते तो हर बार की तरह इस बार भी हमारी नरमाई को हमारी कमजोरी ही समझा जायेगा| सब जानते हैं कि जब अमेरिका पर कोई हमला करता है तो अमेरिका कार्यवाही करके कितना कठोर जबाब देता है! हम कब अमेरिका जैसे मजबूती से जबाब दे पाएंगे? अपनी रक्षा में और दुश्मनों को जबाब देने में क्या दोष है? 
    हमारे देश के एक गुरु, "श्री गुरु गोविन्द सिंह जी ने कहा था कि सवा लाख से एक लडाऊं" | लगता है हमारे प्रधान मंत्री माननीय श्री मनमोहन सिंह जी इस बात को पूरी तरह से भूल चुके हैं| यह वास्विकता है कि श्री मनमोहन सिंह जी भी गुरु गोविन्द सिंह जी का प्रतिनिधित्व करते हैं| हमारे शीर्ष नेताओं को अपनी कमजोरी और वोटों की राजनीती छोड़कर कठोरतम कदम उठा कर जबाबी कार्यवाही करनी ही होगी| यह देश केवल यहाँ के नेताओं का ही नहीं है बल्कि यहाँ की जनता का है, अब तो नेताओं को इसका जबाब देना ही होगा| देश की जनता को ऐसे मरने नहीं दिया जा सकता |
    रक्षा विशेषज्ञ, सेना के अधिकारी और इस देश की जनता सभी मांग कर रही है कि हमे कड़े से कड़ा जबाब दुश्मनों को देना चाहिए| कठोर फैसले लेने में लचर यह सरकार कह रही है की अभी पूरी जानकारी आ जाने दीजिये | यह निश्चित है कि इस हमले की हमसे ज्यादा जानकारी अमेरिका के पास पहुँच चुकी होगी| आखिर हम कौन से युग में जी रहें हैं? जोश में होश नहीं खोना चाहिए यह बात सही है...पर 65 सालों तक हाथ पर हाथ रख नही बैठ जाना चाहिए|
     हर घटना के बाद हमारे नेता यही जबाब देते हैं कि "अगली बार अगर कुछ किया तो हम छोड़ेंगे नहीं, सख्त कार्यवाही करेंगे|" लेकिन कब, कब करेंगे कार्यवाही? कितना इंतजार करे भारत की जनता ? इस देश के शीर्ष नेताओं को अब इसका जबाब देना ही होगा| बहुत सब्र हो चूका है| अगर इस मोजुदा सरकार ने कोई कठोर कदम नहीं उठाया तो इस सरकार पर आक्षेप लगना निश्चित है| अच्छा होगा भारत सरकार इस मसले को भारत की जनता के हवाले कर दे| भारत का एक-एक नागरिक अगर पाकिस्तानियों के कान के नीचे दो-दो हाथ भी लगाएगा तो उन लोगों के दिमाग ठिकाने आ जायेंगे| जनता जब अपनी पर आ गयी तो किसी को छोड़ेगी नहीं| दुनिया के नक्शों से दुश्मनों का  नाम-ओ-निशान मिटा देंगे, जैसे बच्चे मिटाते हैं रबड़ से|
     समय जरुर बिता है पर 15 अगस्त का वो पवित्र दिन फिर आ गया है, वही 15 अगस्त, 1947 वाला, केवल सन बदला है 2013, लेकिन अब वो आजादी वाली ग़लतियाँ दुबारा नहीं दोहराही जाएँगी| 
     ...आखिर हम कब तक एक गाल पर थप्पड़ खा कर दूसरा गाल आगे करते रहेंगे? दुसरे गाल पर थप्पड़ खाने की यह निति बदलने का वक्त आ गया है| अब हम थप्पड़ नहीं खायेंगे, अब हम थप्पड़ खिलाएंगे|

Friday, August 2, 2013

क्या घालमेल है कुछ नहीं जानते? जिसके पास पॉवर है उसके पास सबकुछ है|


     एक धर्म विशेष के लोगों द्वारा बनाई गयी एक दीवार गिरा देने वाली सस्पेंडेट IAS अफसर दुर्गा शक्ति नागपाल के मामले में सपा पार्टी अपने रुख पर अड़ गयी है| इस तरह की घटनाओं से सभी राजनैतिक पार्टीयां को वास्तव में सामप्रदायिकता का जहर घोलने का मौका मिल जाता है| लगभग सभी राजनैतिक दल मौखिक रूप से सपा के रुख का समर्थन कर रहें हैं, और कारण साफ है| सभी राजनैतिक पार्टीओं की सामप्रदायिकता की परिभाषा अपने-अपने वोट-बैंक के अनुसार होती है| 
     सभी राजनैतिक दल/पार्टीयां अपने आप को एक धर्म विशेष के नजदीक और उस धर्म विशेष का हितैषी साबित करने का कोई भी मौका नहीं छोड़ना चाहते हैं| जिस प्रकार से आजादी के ही बाद से साम्प्रदायिकता की परिभाषा बदलती रही है| ठीक उसी प्रकार से देश-भक्ति की परिभाषा भी बदलती रहती है| देश-हित और जनता के भले में कुछ-न-कुछ करते रहने का दावा करते रहने वाले राजनेता वास्तव में अपना और अपने दलों का ही हित साध रहे होते हैं|
     जैसा कि मैंने अपने पहले के एक लेख (17:07:2013 जब सब कुछ सही है तो राजनैतिक दल सूचना के अधिकार के अंतर्गत आने से क्यों बचना चाहते हैं? ...क्या कहीं कुछ दाल में काला तो नहीं है? में लिखा था कि RTI से बचने के लिए राजनैतिक दल अध्यादेश ले कर आ रहे हैं, ठीक वैसा ही होने की ख़बरें आ रही हैं| अगर आपको याद हो तो कुछ ऐसा ही नजारा लोकपाल विधेयक के पास होने के वक्त आया था| उस वक्त पहले तो सभी राजनैतिक पार्टीयां लोकपाल के लिए ही तैयार नहीं हुईं, बाद में लोकपाल को इतना कमजोर करके पास करने के लिए तैयार हुईं कि लोकपाल का होना-न-होना राजनैतिक दलों के लिए तो मायने नही रखता था| सभी भारतीय राजनैतिक दल केवल एक ही बात में पूर्णतया सहमत हैं कि अपनी कमाई कैसे बढ़ाई जाये? भले ही वह सैलरी हो या अन्य कोई और तरीका| आजादी से लेकर अब तक शायद ही कोई ऐसा मौका हो जब सांसदों ने अपनी सैलरी बढ़ाने के लिए एकजुट होकर विधेयक को ध्वनिमत से पास न कर दिया हो| अपने देश की गरीब और लाचार जनता का उस समय शायद उनको ख्याल भी न आता हो? इसी गरीब और लाचार जनता की गाढ़ी कमाई का हिस्सा उनकी सैलरी देने में जा रहा है| एक बार तो निर्लजता हर किसी "आत्मवान प्राणी" को त्यागनी ही चाहिए| 
यह बेचारे देशवासी इसी तरह ठगे जाते रहेंगे और यह राजनेता अपनी कमाई बढ़ाते रहेंगे, निरंतर बिना रुके| 
     खरबों रुपयों के हुए घोटालों का अभी तक कुछ पता नहीं चल सका है| वैसी की वैसी ही जाँच एजेंसी हैं, वैसे ही उनके परिणाम| सभी जांचें ऐसे ही चलती रहेंगी, सभी अपराधी अपनी उम्र पूरी करने तक धन-दौलत, पद-प्रतिष्ठा भोगते रहेंगे, उनके बाद उनके परिजन सभी भोगों को भोगेंगे| सही कहा गया है कि "कव्वा मोती खायेगा", ऐसा कलयुग आ ही गया है? क्या इस से ज्यादा कलयुग भी आने वाला है?
     इनके खिलाफ आवाज उठाने वाला या तो जेलों में होगा या फिर निलंबन की मार सहेगा, या फिर इन सबके आलावा भी और बहुत रास्ते हो सकते हैं| सत्ता के मद में चूर शक्तिशाली नेता एक राजा की ही तरह कुछ भी कर सकता है| सत्ता हासिल करने के लिए कुछ राजनेता किसी भी तरह का परपंच कर सकते हैं| किसी भी अपराधी का सहारा ले सकते हैं, तभी तो जब दभी भी अपराधियों को देश की राजनीती से बाहर रखने की कोशिश की जाती है, यह राजनेता कोई-न-कोई पेंच लगा ही देते हैं| कुछ राजनेता सत्ता में रहने के लिए कुछ भी कर सकतें हैं कुछ भी| आजादी के समय सरदार वल्लभ भाई पटेल पूरे देश को एक करना चाहते थे| और आज के नेता देश के टुकडे-टुकडे करना चाहते हैं, सब वोटों के लिए| क्योंकि वोट है तो पॉवर है, सत्ता है| कोई समर्थन देने के लिए ब्लैकमेल कर रहा है तो कोई जाँच से बचाने के लिए ब्लैकमेल कर रहा है| कौन किसे ब्लैकमेल कर रहा है, कुछ पता ही नहीं है? क्या घालमेल है कुछ नहीं जानते? जिसके पास पॉवर है उसके पास सबकुछ है|
     ...पर किसके पास पॉवर है? किसी को कुछ नहीं पता| अगर किसी के पास कुछ नहीं है तो वो बेचारी जनता है| जो कमाती है, लाती है और इन बेशर्म लोगों को लूटपाट का मौका देती है| लूटपाट के बाद यह बेशर्म लोग दुवारा फिर आ जाते हैं| जनता फिर लुट जाती है, यह ही क्रम चलता रहता है| जब सभी लुटेरे हों तो जनता भी बेचारी क्या करे? 
      हमें दो वक्त की रोटी की परवाह किये वगैर, यह क्रम तो तोडना ही होगा| आने वाली पीढ़ियों के लिए हमारा कुछ तो फ़र्ज़ है ही, हमें कुछ तो करना ही है| या फिर सब आने वाली पीढ़ियों पर ही छोड़ दें, बस जियें और मर जाएँ, धर्म विहीन कर्तव्य विहीन (मानव-धर्म और मानव-कर्तव्य के बिना) एक जानवर की तरह!  
     हमारे देश के कुछ राजनेता पूरी तरह से धरातल पर पहुंच चुके हैं, बेईमानी और निर्लजता के मामले में तो कुछ राजनेता धरातल तोड़ के रसातल में चले जाना चाहते हैं| आखिर स्पर्धा का जमाना है| कितना अच्छा हो कि सभी बेईमान और निर्लज्ज नेता धरती में ही समा जाएँ और तभी वहीँ पर ज्वालामुखी विस्फोट हो जाये| एक बार मेरे भारत-वर्ष में और साथ-साथ पूरे विशव की धरती पापों से मुक्त हो जाये और यहाँ एक बार फिर श्रीकृष्ण की बंसी की मधुर संगीत सुनाई दे| का:श मेरा यह सपना पूरा हो जाये, भले ही मेरा सपना पूरा होने तक मेरी आँखे ही न खुलें|