पिछले दिनो खबरें आई कि एक "राष्ट्रपति पुरुस्कार विजेता" एक कम्पाउण्डर के पास लगभग दो सौ करोड़ की सम्पत्ति मिली है |भ्रष्टाचार के इस युग में वैसे तो किसी खबर पर आश्चर्य नहीं होता, पर समान्यत: एक कम्पाउण्डर के पास इतनी संपत्ति की कल्पना भी नहीं की जा सकती है| यह तो साफ है कि कम्पाउण्डर महाशय ने यह संपत्ति अपनी महेनत के पैसों से नहीं बनाई है |ख़बरों से पता चला कि इन कम्पाउण्डर महाशय के कई मेडिकल कॉलेज में हिस्सेदारी तो है ही साथ ही यह महाशय सुविधा शुल्क लेकर कई प्रकार की और सुविधाए भी देते हैं |
इन्ही सुविधाओं और हिस्सेदारी के कारण इन्होने यह संपत्ति जोड़ी है |जब ऊपर से लेकर नीचे तक सभी भ्रष्ट हैं तो इन कम्पाउण्डर महाशय की क्या बात करना, इन्हें मौका मिला और यह गंगा नहा लिये |फिर यह कम्पाउण्डर महाशय भी तो ऊपर तक पहुँच वाले हैं |ऊपर तक पहुँच वाले आदमी क्या नहीं कर सकते? इस देश पर ऊपर तक पहुँच वालों का ही कब्ज़ा है |
इन ऊपर तक पहुँच वाले कम्पाउण्डर महाशय ने अगर अपनी पहुँच के बल पर राष्ट्रपति पुरुस्कार ले लिया तो क्या बड़ी बात है ? यह ही तो हमारी आज की भारतीय व्यवस्था का असली चहेरा है |ऐसे भ्रष्ट-बेईमान आदमी को हमारे देश में राष्ट्रपति पुरुस्कार से नवाजा जाता है |वास्तव में हमारे पास किसी भी काम की कोई स्पष्ट निति और व्यवस्था ही नहीं है, भले ही वह पुरुस्कार हों या फिर कुछ और आयोजन |हर निति में झोल ही झोल हैं |हर ऊपर तक पहुँच वाला आदमी इन नीतिओं को अपने हिसाब, से तोड़-मोड़ सकता है |यही कारण है कि "ऊपर तक पहुँच वाले कुछ जुगाडू आदमी "पुरुस्कारों तक तो पहुँचते ही हैं साथ ही साथ इन व्यवस्थाओं का अंग भी बनते हैं"|
जब राष्ट्रपति जैसे बड़े और परतिष्ठित सम्मान में ऊपर तक पहुँच वाले और जुगाड़ की व्यवस्था है, तो बाकी के सम्मान और पुरुस्कारों के बारे में क्या कह सकते हैं ? क्या अन्य: सम्मान और पुरुस्कारों में भी ऊपर तक पहुँच वाले और जुगाड़ की व्यवस्था वालों की नहीं चलती होगी, क्या इस बात से इंकार करना चाहिए ? इस व्यवस्था के कारण ही सम्मानो और पुरुस्कारों के वास्तविक और योग्य उम्मीदवार इन सम्मान और पुरुस्कारों से वंचित रहते हैं, जबकि कुछ भ्रष्ट, नालायक और अयोग्य व्यक्तियों को प्राय: यह सम्मान और पुरुस्कार मिल जाते हैं |
शायद इसी कारण बहुत से जुगाडू राजनेता, करोडो-अरबो रुपयों का घोटाला कर के आजाद तो घुम रहे हैं, चुनाव जीत कर इस देश के नीतियां भी निर्धारित कर रहें हैं? CBI और IB की मौजूदा छबि से एकदम स्पष्ट है कि "जरुरत पड़ने पर यह राजनेतिक जुगाडू" अपने दुश्मनो को भी फ़साने का इंतजाम करते हैं |
भ्रष्टाचार के करोड़ों-अरबों रुपयों के काले धन की पिछले दिनों बहुत चर्चा चल रही थी, शोर-शराबा हो रहा था | लेकिन अब खबरें आ रही हैं कि विदेशी बैंकों में पहले के मुकाबले काफी कम भारतीय काला धन ही बैंकों में बचा है | यानि कि ऊपर तक पहुँच वालों की महेरबानियों से काले धन को इधर से उधर करके ठिकाने लगा दिया गया है | काले धन को इधर से उधर करने का मौका देने के लिए ही शायद इस मामले में इतनी देर लगायी जा रही है ?
हर आदमी अपने-अपने जुगाड़ में लगा है, कोई करोड़ों-अरबो के जुगाड़ में तो इस देश की गरीब और बेचारी जनता दो वक्त की रोजी-रोटी के जुगाड़ में |अगर इस देश की गरीब और बेचारी जनता को दो वक्त की रोजी-रोटी के इंतजाम न करना होता तो, "हमारे देश के इन गद्दारों, ऊपर तक पहुँच वाले, जुगाडू और जनता के दुःख-दर्द से बेपरवाह राजनेताओं" को एसा सबक सिखाती कि इनकी कई पीढियां सुधर जाती |