Tuesday, August 27, 2013

देश की आम जनता तक बिना भेद-भाव के विकास और न्याय की अवरल धारा पहुंचनी चाहिए|

हमारे "लोकतान्त्रिक देश" की भेद-भाव की निति कब खत्म होगी? और आम-ओ-खास को एक समान अधिकार और अवसर मिलेंगे? 


     भेदभाव की निति भारत वर्ष में धर्म और जाति के आधार पर तो भेद्वाव किया ही जाता है, पर सक्षम-असक्षम, आम नागरिक और राजनेतिक या प्रभावशाली के आधार पर भी भेदभाव किया जाता है| कल संसद भवन में जब सोनिया जी की तबियत ख़राब हो गयी| तो उन्हें ईलाज के लिए हॉस्पिटल में ले जाया गया वहां लगभग 5 घंटे उनका ईलाज चला| तबियत बिगड़े तो सभी को ईलाज मिलना ही चाहिए, फिर चाहे वह सोनिया गाँधी हों या भारत का कोई आम आदमी| लेकिन भारत के आम आदमी को तो सही तरह से ईलाज मिल ही नहीं पाता है| कई बार तो आम आदमी (मरीज) को हॉस्पिटल में एडमिट ही नहीं किया जाता है| क्या भारत के एक आम आदमी को कभी ऐसा ईलाज मिल सकेगा जैसा सोनिया जी को मिला है?
    भारत के एक संत आसाराम बापू पर बलात्कार के आरोप लगे हैं| इन पर कानून की कई ऐसी धारा भी लगी हैं, जिन पर तुरंत गिरफ़्तारी होनी चाहिए साथ ही कई धारा गैरजमानती भी हैं, लेकिन कई दिन बीत जाने के बाद भी उनको गिरफ्तार नहीं किया गया है| क्या कारण है कि कानून का पालन नहीं किया जा रहा है? आप अच्छी तरह से कल्पना कर सकते हैं कि यदि यही सभी आरोप किसी साधारण व्यक्ति पर होते तो क्या होता? क्या पुलिस इसी तरह हाथ पर हाथ रख कर बैठी रहती? विदेशों से कई बार ऐसी ख़बरें आती हैं जिन में बताया जाता है की वहां के प्रधान मंत्री स्तर के नेताओं के परिवार जन यदि कानून तोड़ते हैं, तो उनको भी पुलिस गिरफ्तार कर लेती है|
      हमारे "लोकतान्त्रिक देश" की भेद-भाव की निति कब खत्म होगी? और आम-ओ-खास को एक समान अधिकार और अवसर मिलेंगे?  हमारे देश को धर्म और जाति-पाती ऊँच-नीच के दायरों में बाटने वाले हमारे देश के कुछ नेता हैं, जिन्होंने अपना वोट बैंक बनाने के लिए हर तरह के हतकंडे अपनाये| आजादी से लेकर अभी तक यह दौर ब-दस्तूर चालू है| कुछी दिनों पहले यह खबर आई थी कि एक राजनैतिक पार्टी के राजकुमार ने आने वाले चुनावों के उमीदवारों से उनका धर्म-जाति आदि पूछी है| साथ ही यह भी पूछा है कि उस उम्मीदवार की जाति के कितने वोटर उस क्षेत्र में हैं| राजनैतिक उठा-पटक से स्पष्ट है की हमारे देश के नेता वोटों के लिए कुछ भी कर सकते हैं| इस देश के नेताओं को यह समझ लेना चाहिए कि इस आम नागरिक की बदौलत ही इन नेताओं का अस्तित्व है| आम नागरिक के कारण ही नेता खास हैं, और खास रहन-सहन और खास ठाठ, शान-ओ-शौकत का लुफ्त ले पाते हैं| इसी देश के आम आदमी की वजह से पुलिस की सुरक्षा, लाल-नीली बत्तियों की गाड़ियाँ आगे-पीछे घुमती हैं| यह भेद-भाव मिटना ही चाहिए और...  देश की आम जनता तक बिना भेद-भाव के विकास और न्याय की अवरल धारा पहुंचनी चाहिए|

Monday, August 26, 2013

राजनेताओं ने हिन्दू को एक गाली सरीका बना दिया है|


भारतीय राजनेता जितना शक्ति प्रदर्शन हिन्दुओं पर करते हैं क्या मुसलमानों पर भी कर सकते हैं?
...विश्व हिन्दू परिषद् (वी.एच.पी.) प्रायः राजनैतिक परिस्तिथि और चुनाव के समय ही अपनी गतविधियाँ क्यों बड़ा देती है?

     उत्तर प्रदेश में आजकल जो हो रहा है उसे पूरा देश और विश्व देख रहा है| धारा 144 और पूरा शासन-प्रशासन, पुलिस लगा कर तथा 84 कोस यात्रा की किलेबंदी कर के उ. प्र. सरकार ने 84 कोस यात्रा को नाकाम करने के लिए अपनी सारी शक्ति लगा दी है| उ. प्र. सरकार का पूरा प्रशासन केवल इस बात को देख रहा है, कि प्रदेश में कुछ हो या न हो पर 84 कोस की यात्रा नहीं होनी चाहिए| कुछ राजनेता वोटों की खातिर धर्म विशेष को पूरी तरह से कुचलने और उसका शोषण करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं| एक तरफ एक धर्म विशेष का शोषण किया जाता है तो दूसरी तरफ अपने-आपको धर्म-निरपेक्ष कहलाने वाले न्यूज़ चैनल और कुछ नेता 84 कोस यात्रा पर चुटकी लेकर हिन्दुओं का मजाक उड़ा रहे हैं और जले पर नमक छिड़कने का काम भी कर रहे हैं| 
     इन धर्म-निरपेक्ष लोगों से पूछा जाना चाहिए कि इसमें मजाक उड़ाने लायक क्या है? यह धर्म-निरपेक्ष लोग किश्तवाड़ की घटना के समय कहाँ थे? इस तरह ही शासन-प्रशासन की पूरी शक्ति यदि किश्तवाड़ में लगायी जाती तो क्या किश्तवाड़ की स्तिथि अभी वाली होती? वहां पर राज्य और केंद्र सरकार केवल इस लिए चुप रहीं क्यों की वहां पर हिन्दू मारे गए, देश के तिरंगे को जलाया गया? क्या देश के झंडे का भी कोई धर्म होता है? लगता तो ऐसा ही है, वर्ना कतिथ धर्म-निरपेक्ष न्यूज़ चैनल किश्तवाड़ की पूरी कवरेज दिखाते और पूरा सच जनता के सामने रखते| इस मामले पर सभी न्यूज़ चैनलों और राजनेताओं पर चुप्पी छा गयी| नेताओं को तो हिन्दुओं को कुचलने पर दुसरे धर्म के वोटों के मिलने की उम्मीद रहती है, पर न्यूज़ चैनलों का क्या?
     हिन्दुओं को कुचलने और शोषण करने के लिए, "हिन्दू कोड बिल" लाकर बीज बोने का काम तो सालों पहले ही कर दिया गया था| आज के राजनेता तो उन बीजों को पानी देकर और पाल-पोस कर एक बड़ा पेड़ बनाने में लगे हैं| इन राजनेताओं का वश चले तो यह लोग अपनी राजनैतिक लड़ाई जितने के लिए आम जनता पर गोली भी चलवा सकते हैं| जैसा की मुलायम सिंह पहले कर भी चुके हैं| भारत के राजनेता, ऐसा लगता है कि पूरी तरह से निर्लज्ज हो चुके हैं, ऐसा भी लगता है कि यह राजनेता किसी भी सीमा को लाँघ सकते हैं| उ.प्र. के जिन जिलों में 84 कोस यात्रा होनी है उन जिलों के स्थानीय लोगों को कितनी परेशानी और दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है उस तरफ किसी का ध्यान तक नहीं गया है|
     विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के हालत देख कर बाकी संसार के लोग हम पर हँसते हों तो हमें आश्चर्य नहीं करना चाहिए| क्या यह ही लोकतंत्र का वास्तविक रूप है और इसी लोकतंत्र के लिए हमारे देश के वीर सपूतों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया था? अधिकतर राजनैतिक दल अपने प्रतिद्वंदी से आगे निकलने की होड़ में ऐसे अलोकतांत्रिक कदमों का प्रत्यक्ष या अप्रत्क्ष रूप से समर्थन करते हैं|
     भा.ज.पा. हिन्दुओं के लिए कुछ करेगी, ऐसा नहीं लगता, क्योकि पिछली बार भा.ज.पा. ने सत्ता में रहते हुए हिन्दुओं के लिय कुछ भी नहीं किया है, कोई वादा पूरा नहीं किया| इसीलिए हिन्दुओं को भा.ज.पा. से कोई उम्मीद नहीं रखनी चाहिए| वी.एच.पी. और भा.ज.पा. एक ही सिक्के के दो पहेलू हैं (वी.एच.पी. के कुछ नेता भा.ज.पा. के भी नेता हैं)| अधिकतर देखा गया है कि वी.एच.पी. की गतविधियाँ चुनावों में भा.ज.पा. को फायदा पहुंचाने के लिए होती हैं| अब जब वी. एच.पी. अपनी जिद्द पर अड़ी है तो देश में चुनाव का माहौल बन रहा है, चुनाव आने तक धीरे-धीरे वी.एच.पी. माहौल को और ज्यादा गर्माने की कोशिश करेगी, जिस से हिन्दुओं में हिंदुत्व की भावना भड़केगी| 
     अगर भा.ज.पा. को हिन्दुओं के लिए कुछ करना है तो कुछ कठोर कदम उठाने होंगे, कुछ कठोर और ठोस फैसले लेने होंगे, गुजरात के मुख्य मंत्री नरेंद्र मोदी की तरह| नरेन्द्र मोदी ने अपनी जो छवि बनाई है, युवाओं में जो नरेन्द्र मोदी के लिए जो उत्साह है, वी. एच. पी. के कारण उसमें कमी आ सकती है| मौजूदा भ्रष्ट सरकार से तभी निजात मिल सकती है जब उसके सामने कोई मजबूत दावेदार हो, पर ऐसा लगता है कि हिन्दुओं के नाम पर भा.ज.पा. अपना विश्वास खोती जा रही है| भा.ज.पा. पर हिन्दुओं को क्यों विश्वास करना चाहिए? इसका जबाब हिन्दुओं को मिलना ही चाहिए! 
     मेरे मत के अनुसार भा.ज.पा. अगर 2014 के चुनाव जितना चाहती है तो भा.ज.पा. को नरेन्द्र मोदी पर पूरा ध्यान देना चाहिए, नरेन्द्र मोदी की छवि के अनुसार ही चुनाव कार्यक्रम बनाना चाहिए| भा.ज.पा. को अपनी एक स्पष्ट और ठोस निति तथा स्पष्ट दिशा बनानी होगी और उसे जनता के सामने लाना होगा| भा.ज.पा. की ढुलमुल निति से अब काम चलने वाला नहीं है, वर्ना भा.ज.पा. न तो पूरी तरह से सरकार में आ ही पायेगी और न ही पूरी तरह डूब पायेगी| यदि भा.ज.पा. हिन्दुओं के साथ है तो भा.ज.पा. को ठोस तरह से यह स्पष्ट करना होगा कि वह हिन्दुओं के साथ है? भा.ज.पा. को यदि हिन्दुओं का साथ देना है तो एक बीज की तरह जमीन में दबना होगा| अगर बार-बार बीज को निकाल कर देखा जायेगा तो बीज पनपेगा कैसे? एक बार तो भा.ज.पा. चुनाव जीत कर सत्ता में आ चुकी है, पर हिन्दुओं का साथ छोड़ कर भा.ज.पा. ने बीज को जमीन (मिटटी) से निकाल कर देख ही लिया है|    ...पर अब शायद भा.ज.पा. को बीज निकाल कर देखने का मौका न मिले, क्योकि अब अगर जमीन से बीज निकाल कर देखा गया तो शायद बीज ख़राब ही न हो जाये | इसलिए भा.ज.पा. को हिन्दुओं का साथ देना है या नहीं ठोस और स्पष्ट रूप से बताना ही होगा, अच्छा होगा इसकी घोषणा, वी.एच.पी. के बजाय नरेन्द्र मोदी करें| नरेन्द्र मोदी को लोग एक आशा की नजरों से देख रहे हैं, नरेन्द्र मोदी की बातों में विश्वास नजर आता है| अब भा.ज.पा. के लिए हाँ या न कहने का वक्त आ गया है|