एक संयोग और देखने को मिल रहा है, जहाँ लोकतंत्र में जनता के सपने पूरे होने चाहिए वहां पर नेताओं के सपनों के अनुसार संसद में एक के बाद एक बिल पास हो रहे हैं|
प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि डीजल और पेट्रोल का प्रयोग कम करें| प्रधान मंत्री के काफिले के साथ चलने वाली दर्जनों गाड़ियाँ, शायद, डीजल और पेट्रोल के बजाय पानी से चलती हैं| प्रधान मंत्री की सरकार के मंत्रिओं और नेताओं के काफिलों की गाड़ियाँ हो सकता है कि पानी या हवा से चलती हों? जहाँ एक गाड़ी से जाया जा सकता है, वहां यह लोग गाड़ियों के काफिले ले कर चलते हैं, कई जगह तो नेताओं के साथ छुटभइये नेताओं और चमचों की गाड़ियों की लम्बी कतारें देखी जा सकती हैं| यह एक संयोग ही है कि वित्त (Finance)की बारीक़ जानकारी रखने वाले व्यक्ति को हमारे देश का प्रधान मंत्री बना दिया है| शायद इनको वित्त मंत्री बनाना ज्यादा अच्छा हो सकता था | इसमें भी दूसरा संयोग यह है कि हमारे प्रधान मंत्री जनता के द्वारा नहीं चुने गये हैं (माननीय प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह जी राज्य सभा के सदस्य हैं)| यह लोकतंत्र है या फिर हमारे लोकतंत्र का जरूरत से ज्यादा लचीलापन ? ऐसी बातें देख कर लगता है कि हमारे लोकतंत्र को कुछ बदलावों की आवश्कता है|
श्री राहुल गाँधी, केवल एक सांसद हैं, लेकिन गाँधी परिवार का सदस्य होने के कारण देश के बड़े से बड़े फैसलों में तो हस्तक्षेप करते ही हैं, कई बार अपने से बहुत ज्यादा अनुभवी और वरिष्ट नेताओं को राजनीती का पाठ पढ़ाते दिख जाते हैं| कई नेता जब उनकी हर सही-गलत बात को एकदम सही बता देते हैं, और खीसें नुपोरते हैं, तो ऐसे लगता है जैसे चमचागिरी और चापलूसी की सभी हदें पार कर जायेंगे| ऐसा लगता है जैसे राहुल गाँधी इस देश को अपनी एक प्रयोगशाला बना देना चाहते हैं| आश्चर्य तब ज्यादा होता है जब वरिष्टतम नेता भी श्री राहुल गाँधी को नहीं रोकते और न ही कुछ कहते हैं| हर कोई राहुल गाँधी को खुश करने में लगा हुआ है| यह हमारे लोकतंत्र के लचीलेपन का एक और उदाहरण है|
एक संयोग और देखने को मिल रहा है, जहाँ लोकतंत्र में जनता के सपने पूरे होने चाहिए वहां पर नेताओं के सपनों के अनुसार संसद में एक के बाद एक बिल पास हो रहे हैं| अभी तक यह नहीं बताया गया है कि इन योजनाओं में लगने वाला लगभग 5 लाख करोड़ से ज्यादा रुपया कहाँ से आएगा? यदि सरकार विदेशों में रखे, लाखों करोड़ों रूपए के काले धन को भारत में ले आये तो इन योजनाओं के लिए काफी पैसा हो जायेगा, बचा हुआ पैसा अन्य योजनाओं में काम आ पायेगा| ....पर देश और जनता की सोचता कौन है? यहाँ तो जो कोई गद्दी पर बैठ जाता है, वो हमेशा, किसी भी तरीके से केवल अपना शासन चलाना चाहता है, चाहे उसके लिए कुछ भी करना पड़े| ऐसी खबरें आ रही हैं कि देश के हालात सुधरने के लिए देश का सोना गिरवी रखा जा सकता है| सही है भई "जब घर में पड़ा हो सोना, तो काहे का रोना" | सत्ता पक्ष हमेशा यह सोचता है कि अपना शासन चलाओ, भले ही उसके लिए देश और देश का खजाना खोखला कर दिया जाये| अगर, अगले चुनाव में जीत गए तो अपने गुण-गान करते रहेंगे, पब्लिक से सच छुपाते रहेंगे और ऊपर से टिप-टॉप दिखाते रहेंगे| अगर, कोई और दल या पार्टी जीती तो बदहाली का सारा ठीकरा उस दल के ऊपर फोड़ देंगे, उसकी नितिओं में कमी निकाल देंगें|
भई-वाह! भारतीय राजनीती, इसका कोई जबाब नहीं, या के फिर यह भी हमारे लोकतंत्र के लचीलेपन का ही उदाहरण है?
हमारे देश के नेता जनता की मूलभूत समस्याओं से ध्यान हटा कर दुसरे बिन्दुओं पर जनता का ध्यान दिलाने के तरीके अच्छी तरह से सीख चुके हैं| कितना अच्छा होता, अगर आजादी के बाद से अब तक की सरकारों ने जनता के रोजगार के अवसर, शिक्षा के अवसर, स्वास्थ्य सेवा और अन्य सुविधाओं को उपलब्ध कराने की कोशिश पूरी ईमानदारी से की होती| यह कोशिश ईमानदारी से अभी तक की सरकारों ने नहीं की, और नतीजा सबके सामने है|
125 करोड़ की जनसंख्या के साथ हम, संसार में सबसे ज्यादा जनसंख्या वाले देश चीन से जनसंख्या के मामले में टक्कर लेने को तैयार हैं| पर क्या हम आज की तारीख में चीन से तरक्की के मामले में भी टक्कर ले सकते हैं| आज के समय में चीन विश्व की अर्थव्यवस्था में उभरता हुआ मुख्य देश है, जिस से अमेरिका जैसा देश भी माहौल के अनुसार बात करता है| हमें नहीं भूलना चाहिए कि चीन भी भारत की तरह ही गुलाम देश था| लेकिन आजादी के बाद चीन आज कहाँ निकल गया और हम कहाँ रहे गए, हमारे साथ कुछ न कुछ तो गलत है ही| जनसंख्या वृधी रोकने के लिए आखिर हम क्या कर पाए हैं ? कुछ लोगों के लिए एक कानून है तो कुछ के लिए एक दूसरा कानून| जनसंख्या में भी धर्म का मसला आता है, और कानून बनाने वालों को वोट लेने होते हैं और वोटों की चिंता करनी होती है| वोट लेने के लिए तो यह कुछ भी कर सकते हैं, भले ही हमारे देश की जनसंख्या विश्व भर में सबसे ज्यादा ही क्यों न हो जाये|
इस देश की गरीब जनता बेचारी दो वक्त की रोटी के जुगाड़ में लगी है, और वह लोग हमारे लिए निति निर्धारण करने में लगे हैं, जिन लोगों को जनता की वास्तविक समस्या से कुछ लेना देना नहीं है या फिर उन लोगों को जनता की वास्तविक समस्याओं का पता ही नहीं है| गरीब जनता पर शासन करते रहो, देश को बेचारी जनता जैसे-तैसे संभाल ही रही है|